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मैं अपने आप को अच्छा नहीं मानता हूं

हसीन, ख़ामोश और बेहद सशक्त ! उसके बारे में केवल यही तीन बातें ; मुझे याद हैं। पहली बार अपनी मध्यमवर्गीय औकात का मुकुट सर पर सजाए उसे एक चाय की टपरी पर ले गया था। फिर मुलाकातें बढ़ती गई, आना जाना लगा रहा और एक दिन हम साथ रहने लगे.

आज़ जब बहुत दूर होकर भी उससे करीबी महसूस करता हूं तो एक ही चीज़ खटकती है ; उसकी ख़ामोशी

ना जानें क्यूं , ख़ामोशी ही उसके जीवन का सार रही। ख़ामोशी ही प्रश्न और ख़ामोशी ही उत्तर । इसे उसने हथियार बना रखा था। अपनी हर तारीफ पर ख़ामोश रही। हर बुराई पर भी ख़ामोश। उसकी हर मुस्कुराहट में ख़ामोशी झलकती थी तो हर आंसू ख़ामोशी की एक भरी दास्तां लेकर निकलते थे। 

हर अत्याचार को ख़ामोशी से सहने वाली ने ख़ामोशी में ही मुझसे प्यार कर लिया और एक दिन ख़ामोशी से इज़हार भी कर दिया, चुपके से आई - अपनी एड़ियों को थोड़ा उचकाकर अपना हाथ मेरे कंधे पर रखा और अपनी ओर खींच लिया। सांसों की मिली हुई सरगम के बीच आंखों को बंद किए हुए ही मेरे कानों में बेहद खामोशी से कुछ शब्द कहें .

मैं ज़ोर देकर कहें देता हूं, आप उसकी ख़ामोशी को चुप्पी मत समझ लेना, ना बिल्कुल ना ! वो चुप्पी मार कर रहने वालों में से नहीं थी। बस ख़ामोश रहा करती थीं। बिल्कुल उत्तर भारत के समतल इलाकों में केवल कलकल को अपने साथ लेकर बहने वाली पवित्र गंगा की तरह ख़ामोश थी वह ! चुप्पी साथ वाले आदमी को मार डालें देती है। उसकी ख़ामोशी ने कभी मारा नहीं मुझे , उसने तो हमेशा ख़ुद में डूबा लिया, मैं घुल मिल गया। ठीक वैसे ही जैस गंगा के किनारों पर बैठे बैठे लोग उसकी वातावरणीय ख़ामोशी में ही मन रमा लेते हैं।

आज़ जब भी उसके बारे में सोचता रहता हूं तो एक बीच भींगी हुई आंखों में ना जानें कैसी मुस्कान उभर आती है और ठीक इसी समय यह विचार आता है की उसका जीवन तो " ख़ामोश पुराण " है। एक दिन चुपचाप मेरे पास आई, बेहद ख़ामोशी से अपनी लिखीं जा चुकी नियति का ब्यौरा सुनाया और मेरे तमतमाए चेहरे को सीने से लगा लिया। 

मैने साफ़ साफ़ सुना , शायद वो नहीं, उसकी धड़कने, शरीर के हर हिस्से , हर कोने , जो मुझसे परिचित थे, पूरी ताक़त से चिल्ला चिल्ला कर कह रहें थे की एक मजबूर बाप के फ़ैसले को उसकी बेटी ने ख़ामोशी से स्वीकार कर लिया है। 

गांव से 150 किलोंमीटर दूर इलाहबाद पढ़ने , बैंक पीओ के नौकरी की तैयारी करने आई बेटी, अच्छे वर की तलाश पूरी होते ही ख़ामोश वापस घर लौट गई। अपने कम दहेज़ के बदले मिलने वाले "अच्छे वर" के यहां जाने के लिए। उस दिन से मैं अपने आप को अच्छा नहीं मानता हूं। उसके खामोशी के साथ वापस लौटने ने, मेरे अच्छा होने की एलिजिबिलिटी पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया। 

रश्की 30 जनवरी 2022


12:17 AM

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