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Showing posts from April, 2020

वक़्त की बात , चित्रों के साथ !

किसी शायर ने कहा है कि किसी इंसान में बसते है कई इंसान, उसे ठीक से देखना हो तो कई बार देखो.                    चित्र - मीनाक्षी  मैंने कभी भी इसे सिरियस नही लिया. क्योकि मुझे यकीन था की इंसान ऐसा भी नहीं होता है कि जब भी मिले हर बार अपना चेहरा बदलता रहें। कहते है उम्र आदमी को अनुभव देता है। बहुत कम उम्र में मुझें जल्दी ही यह अहसास हो गया कि इंसान बिल्कुल उस गुलाब की तरह होता है, जो एक वक्त पर नन्हा कोमल बिना काटों वाला सुकांत होता है वहीं दूसरे वक्त पर खुशबूदार प्रेम का प्रतीक फूल बना होता हैं। फ़िर तीसरे वक़्त पर वह पंखुड़ियों में किसी मृत प्रायः देह पर बिखरा होता हैं।                  चित्र - मीनाक्षी मेरी आदत रहीं है कि खुली किताब की तरह रहों. इसके कई फ़ायदे है। व्यक्तित्व इतना बिंदास हो जाता है कि किसी से छिपाने को कोई बात नहीं होती है। हृदय में कोई झूठ नहीं होता है, जिसे गहरे घाव की तरह दबा कर रखा जाए. जिंदगी खुशहाल रहती हैं. चमकती रहती है. बिल्कुल ऐसे जैसे किसी फिला मेंट वाले बल्ब से सूरज चमक रहा हो।                 चित्र - विपुल मेरे आप पास ऐसे कई लोग है जो

राहुल रश्की की चुनिंदा कविताएं

राहुल रश्की की चुनिंदा कविताएं 1. लॉकडाउन में उसकी यादें आज पढ़ते वक़्त वो नजर आ रही है  किताबों के पन्ने में खुद को छुपा रही है ना जाने क्यों इतना शरमा रही है ? मारे हया के न कुछ बोल पा रही हैं ! इन घुटन भरी रातों में खुराफ़ाती इशारें से हमें कुछ बतला रही है ! आशय, अर्थ, प्रकृति हो या फ़िर परिभाषा सबमें वह ख़ुद का विश्लेषण करा रहीं है इस टूटे हुए दिल में क्यों घर बना रहीं है ? घड़ी की सुई समय को फ़िर दोहरा रही है कोई जाकर पूछे उससे अपनी मुहब्बत में एक नया रकीब क्यों बना रहीं हैं ?                    - राहुल रश्की                     चित्र - मीनाक्षी 2 . कलेजे में प्यार पकाता हूं मैं जिससे प्यार करता हूं वो किसी और से प्यार करती है और मुझसे प्यार का दिखावा मैं कवि हूं यह प्यार मुझे छलावा लगा  मैंने मुंह मोड़ लिया है उससे जैसे धूप से बचने को हर इंसान सूरज से मुंह मोड़ लेता है मैं अपने कमरे में अकेले रहता हूं वहां मुझे कई लोग मिलते है मेरे आस पास वो भीड़ लगा कर मेरी बातें करते है और मैं कुहुक कर उनसे कहता हूं मेरे दिल में दे