आज के लोग जमाने को तस्वीरों में कैद करने लगे है. इसके साथ जुड़ी होती है कई जिन्दगी, यादगार किस्से , मनपसंद लम्हें और खूबसरत पल! तस्वीरों का इतिहास उतना भी पुराना है जितना मनुष्यों का . आज आदमी मशीन द्वारा तस्वीर खींचता है. जब मशीन नहीं थी तब वह स्मृतियों में तस्वीरें सुरक्षित रखता था. जैसे जैसे याददाश्त ख़तम होती जाती, तमाम तस्वीरें भी मिटती जाती. आसान शब्दों में कहें तो किस्से कहानियों के एलबम में भाव विभोर अभिव्यक्ति द्वारा नायाब तस्वीरों का छायांकन लोग किया करते थे. आधुनिक युग और इसके आविष्कार ने प्रत्येक वस्तु के भाव , स्थिति और महत्व में आश्चर्यजनक परिवर्तन ला दिया. सदियों से चली आ रही परिभाषाएं बदल गई. चित्रांकन का स्थान छायांकन ने ले लिया. छायांकन के आविष्कार के पीछे के मजुबत कारण रहे होंगे इस पर एक छात्र मज़बूत राय रख सकता है, मै व्यक्तिगत तौर इतना कह सकता हूं कि एक भावात्मक लगाव ने इसके आविष्कार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. शायद उस वक़्त किसी को यह महसूस नहीं हुआ होगा की एक जमाने में फोटोग्राफी एक इंड्रस्टी के रूप में खुद को स्थापित कर लेगी. 1839 में सर्वप्रथम फ्रां
" रश्की नामा " ब्लॉग के एक एकमात्र और नियमित लेखक राहुल कुमार पाण्डेय " रश्की " हैं। आप हिंदी साहित्य , राजनीति विज्ञान और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के गंभीर अध्येता हैं। समसामयिकी विषयों पर चिंतन और लेखन को लेकर सक्रिय रहते हैं। इस ब्लॉग पर व्यक्त विचार नितांत व्यक्तिगत हैं। उपलब्ध सामग्री राहुल पाण्डेय रश्की के स्वामित्व अधीन हैं। प्रकाशन हेतू अनुमती आवश्यक है। ब्लॉग से जुड़े समस्त कानूनी मामलों का क्षेत्र इलाहाबाद होगा।