लॉक डाउन में आपकी यादें ! 2019 में कोई रात रहीं होगी। हम दोनों अपने-अपने रूम में खाना खाकर कुछ देर आपस में व्हाट्सएप पर बतिया लिए। हमने सोचा कि कुछ पढ़ लें , इस नियत से नेट ऑफ कर फोन रख दिया। इसके बाद कॉल आ गया। हमने बता दिया अब पढ़ने जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम भी आ जाए साथ पढ़ने, मैंने बुला लिया। साथ में 2 बजे तक पढ़े होगे। फ़िर आराम करने लगें। बैठे बैठे कमर भी दुख गई होगी शायद इसी लिए लेट गए। मेरे साथ एक बड़ी दिक्कत है कि अगर हाथ में मोबाइल हो तो सामने कितना भी प्रिय व्यक्ति बैठा हो मैं मोबाइल चलाने में व्यस्त हो जाता हूं। उस समय भी मैंने बैठ कर मोबाइल चलना शुरू कर दिया। इस पर उन्होंने गहरी आपत्ती दर्ज की.. जो शब्दों के रूप में ना होकर मोबाइल छीना झपटी के रूप में थीं। मैंने कहा ठीक है रख देता हूं और मोमेंट के मुताबिक एक गाना लगा दिया " लग जा गले "! दो तीन घंटे की जबरजस्त पढ़ाई, रात के डेढ़ दो बजे का समय इमोशनल किए जा रहा था। गाने के साथ उन्होंने भी गुनगुनाना शुरू कर दिया। कसम से उस समय उनकी आवाज़ लता जी से भी प्रिय लग रहीं थीं। मैं मोबाइल में बज रहें गाने को भूल
" रश्की नामा " ब्लॉग के एक एकमात्र और नियमित लेखक राहुल कुमार पाण्डेय " रश्की " हैं। आप हिंदी साहित्य , राजनीति विज्ञान और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के गंभीर अध्येता हैं। समसामयिकी विषयों पर चिंतन और लेखन को लेकर सक्रिय रहते हैं। इस ब्लॉग पर व्यक्त विचार नितांत व्यक्तिगत हैं। उपलब्ध सामग्री राहुल पाण्डेय रश्की के स्वामित्व अधीन हैं। प्रकाशन हेतू अनुमती आवश्यक है। ब्लॉग से जुड़े समस्त कानूनी मामलों का क्षेत्र इलाहाबाद होगा।