वक़्त के बहाने अनुभव की बातें एक वक़्त रहा जब हमें इस बात पर यकीन था कि इश्क आदि हमारे जैसे लड़कों के लिए नहीं बना है। हम दिन भर दोस्तों के बीच मौज में झूमते रहते थे. दिन का आधा वक़्त इशकबाजों का मज़ा लेने में निकाल देते थे। फ्रेंड सर्किल में जो लड़के मोहब्बत की बातें करते उन्हें बहिष्कृत मान लिया जाता, ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार प्राचीन भारत में अछूत समाज से बहिष्कृत रहा करते थे। जिंदगी बहुत मौज में बीत रही थी... फ़िर वो वक़्त भी बीत गया। उम्र ने उस पड़ाव पर लाकर खड़ा कर दिया जहां मैंने खुद के आस पास बहुत से लोगों को देखा। जो ललक भरी नज़रों से मेरी तरफ देखते थे। उन्होंने मुझसे आशाएं पाल रखी थीं। मेरा परिवार, मेरे दोस्त, मेरा समाज मुझसे कुछ चाहने लगा था। बड़ा अजीब वक़्त रहा है। जिस करियर को हम अवसर के रूप में देखते आए थे वो अब आवश्यकता बन चुका था। इसी आवश्यकता कि तलाश ने शहर शहर भटकना शुरू कर दिया। सारे दोस्त पीछे छूट गए , साथ में समय भी छूट गया। जो केवल अपना होता था। कभी वक़्त को ख़ुद के मुताबिक़ बदलने वाले हम वक़्त के मुताबिक़ खुद को बदलने लगे। ऐसा नहीं था कि
" रश्की नामा " ब्लॉग के एक एकमात्र और नियमित लेखक राहुल कुमार पाण्डेय " रश्की " हैं। आप हिंदी साहित्य , राजनीति विज्ञान और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के गंभीर अध्येता हैं। समसामयिकी विषयों पर चिंतन और लेखन को लेकर सक्रिय रहते हैं। इस ब्लॉग पर व्यक्त विचार नितांत व्यक्तिगत हैं। उपलब्ध सामग्री राहुल पाण्डेय रश्की के स्वामित्व अधीन हैं। प्रकाशन हेतू अनुमती आवश्यक है। ब्लॉग से जुड़े समस्त कानूनी मामलों का क्षेत्र इलाहाबाद होगा।