कभी कभी जब मैं कुछ नहीं करता हूं तो अपने आप को याद करने लगता हुँ। इस भागदौड़ में जीवन के एक भी पहलू पर ठीक से नजर फिराने का मौका मिलना भी दूभर हैं। खुद पर नजर दौड़ाते हुआ हुए अनेक ब्रेकर मिलते है जब हमें रुकना पड़ता हैं। तुम्हारी यादें यू तो पूरी जिंदगी में साथ साथ जुड़ी हैं, लेकिन यह जो ब्रेकर हैं किसी विशेष खास घटना को खुद से थामे बैठे हैं। ये अतीत के साथ घुल मिल चुके हैं। जब भी मैं ज्यादा दुखी होता हूँ तो वह मुझें ख़ुशी का अहसास कराते हैं, जब मैं ख़ुश होता हुँ तब यह उस खूबसूरत गुलाब के ठीक नीचे नुकीले काट की तरह मुझें कष्ट पहुचने को तैयार रहते हैं। कुछ दिनों तक मैं क्रमागत रूप से सुख दुख का अनुभव करता रहा, पर इन दिनों जब महीनें छह महीनों पर खुद को देखता हु तो केवल दुख होता हैं। अपार पीड़ा होती हैं उन फैसलों पर जिसे मैंने साझा हितों को ध्यान में रखते हुए दीर्द्ध कालीन लाभ की दृष्टि से लिया हैं.... मुझे पीड़ा देते हैं मैं इस पीड़ा से डरने लगा तो खुद को देखना छोड़ दिया। भगवान कृष्ण की फिलॉसफी को ध्यान में रखते हुए अब केवल आज के लिए जी रहा हूँ। अब कभी खुद से मायूस होता हूं तो खुद के
" रश्की नामा " ब्लॉग के एक एकमात्र और नियमित लेखक राहुल कुमार पाण्डेय " रश्की " हैं। आप हिंदी साहित्य , राजनीति विज्ञान और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के गंभीर अध्येता हैं। समसामयिकी विषयों पर चिंतन और लेखन को लेकर सक्रिय रहते हैं। इस ब्लॉग पर व्यक्त विचार नितांत व्यक्तिगत हैं। उपलब्ध सामग्री राहुल पाण्डेय रश्की के स्वामित्व अधीन हैं। प्रकाशन हेतू अनुमती आवश्यक है। ब्लॉग से जुड़े समस्त कानूनी मामलों का क्षेत्र इलाहाबाद होगा।