व्यर्थ ( कविता ) व्यर्थ कब तक खोया रहूं तेरी बातों की जुल्फों में की कभी पूछोगी दो हाल मैं बेसब्री से इंतजार में हूं जब सुबेह होगी तो ! जब सुलह होगी तो ? व्यर्थ कब तक ढलती रहेंगी रात अंधेरे तले की कभी पूछेगी सुबह की लालिमा क्या कहोगे कुहारा छटा तो ! जब अरुणिमा खिलेगी तो ? व्यर्थ कब तक बोलूंगा अधूरे सवालों के जवाब में कभी वक़्त पुकारेगा हमें बुरे वक़्त के दायरे में क्या बोलेंगे अगर कोई पूछे तो ! क्या बोलोगे अगर उसने ठुकराया तो ? व्यर्थ कब तक सोचूंगा डूबकर तिरी तस्वीर में की ख़ुद की तस्वीर में तस्वीर तेरी दिख गई एक टक निहारता रहा तो ! क्या होगा हाल - ए - दिल मकबूजा हुआ तो ? 📝- राहुल पांडेय रश्की ( 26/11/2019
" रश्की नामा " ब्लॉग के एक एकमात्र और नियमित लेखक राहुल कुमार पाण्डेय " रश्की " हैं। आप हिंदी साहित्य , राजनीति विज्ञान और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के गंभीर अध्येता हैं। समसामयिकी विषयों पर चिंतन और लेखन को लेकर सक्रिय रहते हैं। इस ब्लॉग पर व्यक्त विचार नितांत व्यक्तिगत हैं। उपलब्ध सामग्री राहुल पाण्डेय रश्की के स्वामित्व अधीन हैं। प्रकाशन हेतू अनुमती आवश्यक है। ब्लॉग से जुड़े समस्त कानूनी मामलों का क्षेत्र इलाहाबाद होगा।