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आख़िर कब होगा न्याय ?

आख़िर कब होगा न्याय ?

भारत का अतीत समृद्ध प्रभाशाली एवम विविधता से युक्त रहा है। इस धरती ने न्याय और सम्मान की सुखद परिभाषा गढ़ी है। अहिंसा एवम समानता के सिद्धांत को इस मिट्टी ने जन्म दिया है। इन्हीं गौरव गाथा को याद कर भारत के समस्त नागरिक ख़ुद पर गौरव महसूस करते हैं।
सम्पूर्ण विश्व में कोई ऐसा देश नहीं जो हमारे अतीत जैसा समृद्ध रहा हो, यही कारण है कि इस भूमि ने सदा से ही विदेश के लोगों को अपनी और आकर्षित किया है। कभी सोने की चिड़िया कहा जाने वाला यह देश आज एक विकट एवम गम्भीर समस्या से जूझने पर मजबूर हो गया है।

भारत में नारी सम्मान की संस्कृति एवम अवधारणा सबसे प्रचीन है। जंहा पश्चिमी संस्कृति ने महिला को केवल भोग की वस्तु समझा वही भारत ने नारी को देवी का दर्जा देकर समाज को एक अलग रास्ता दिखाया। परन्तु आज वर्तमान समय में हम अपने रास्ते से भटक गए हैं आज भारत मे महिलाओं पर बढ़ती हिंसा ने हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि हम किस रास्ते की और बढ़ चले हैं

कुछ दिनों से अलीगढ़ में मासूम ट्विंकल की निर्मम हत्या का मामला सुर्खियों में है। ऐसा नही है कि यह पहली बार हुआ है। बीते महीनों में ऐसी घटनाएं आम होती जा रही हैं। घटना जब हो जाती है तब पुलिस के पास रिपोर्ट दर्ज कराई जाती है, पुलिस कुछ दिन शांत बैठी रहती है फिर सोशल मीडिया पर यह बहस का मुद्दा बन जाता है वँहा इसका स्वरूप बदल जाता है। कभी- कभी यह जातीयता, नस्ल, रंग, धर्म के अखाड़े का मुद्दा बन जाता है। अंत में पुलिस अभियुक्त को गिरफ्तार करती है। ट्रायल के बाद सजा होती हैं। फिर एक अलग जगह पर एक अलग महिला के साथ यही धटना होती है।

हमारी सरकार, हमारे प्रशासक , और हम यह तय करने में विफल रह जाते हैं कि आखिर ऐसी घटनाएं रुक क्यों नही रही हैं ?
हर बार किसी नारी को अबला साबित क्यों करना चाह रहे हैं हम ?
कभी तेजाब पीड़िता, बलात्कार की शिकायत, दहेज की शिकार,उत्पीड़न की शिकार के रूप में उनकी पहचान क्यों होने लगी हैं ?
प्रतिरोध की सहज शिकार के रूप में समाज में हमारे आपके बीच छिपे शैतान उन्हें क्यों इंगित करने लगे है?
यह सभी तमाम प्रश्न आखिर में एक प्रश्न के रूप में समायोजित हो जाते है कि कब होगा न्याय ?

दुःख उस समय और बढ़ जाता है जब महिला सम्मान एवम मानवता के मूल प्रश्न पर अडिग रहने के बजाय इस प्रकार की धटना दूसरा रूप धारण करने लगती है। जम्मू कश्मीर के कठुआ में हुए अमानवीय कांड के बाद बड़े बड़े सेलिब्रिटी ने खुद के हिन्दू एवम हिंदुस्तान होने पर बकायदा पोस्टर के जरिए शर्म महसूस किया था। यह देखा गया कि दो समुदायों के बीच किस प्रकार आरोप - प्रत्यारोप का दौर सोशल मीडिया के माध्यम से शुरू हुआ। पुनः अलीगढ़ के मामले में सोशल मीडिया के माहौल को फिर से गर्म कर दिया है। एक दूसरे समुदाय को लेकर आपत्तिजनक एवम कठोर टिप्पणी की जा रही है।

दुःख की यही सीमा उस समय अपनी चरम सीमा पर पहुंच जाती जब सरकार के कारिंदे ऐसी धटनाओं का अंजाम देते हैं। मुज्जफरपुर शेल्टर होम कांड तो विदेशी मीडिया में भी गूंज उठा था। किसी प्रकार सरकार के नाक के नीचे नाबालिग बेटियों के साथ हैवानियत की हदें पार की गई।
तो दूसरी तरफ उन्नाव में सत्ताधारी पार्टी के चुनें हुए प्रत्याशी पर बलात्कार के आरोप लगे है। जिन्हें हम शासन का बड़ा दायित्व सौंपते है वही इन घटनाओं में जब शामिल होता है तो मन में जो अभिव्यक्ति उत्पन्न होती है उसे व्यक्त करना आसान नहीं है।

जब हम सभी पक्षों को टटोलें तब उनको कैसे भूल सकते है जिनपर भारत की धार्मिक एवम सांस्कृतिक विरासत को आगे बढ़ाने की।जिम्मेदारी थी वही ख़ुद की पंरपरा एवम पहचान को कलंकित कर बैठे। इस प्रकार के लोगों का यँहा उल्लेख भी शर्म की बात हैं। कोई भी कभी भी आशाराम एवम राम रहीम जैसों को माफ़ नहीं करेगा। इन्होंने सनातन परंपरा को बदनाम करने का काम किया है।

निर्भया और दामिनी जैसे कलंक को अपने माथे पर लगाने के बाद हमनें हैवानों के लिए अपने कानूनों को कड़े किए , उम्र सीमा, फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट , अधिकतम सजा, जैसे कुछ सुधार लागू किए गए । फिर भी इन धटनाओं का न रुकना यह बतलाता हैं कि सभी सुधार नाकाफ़ी सिद्ध हुए है। हिंदुस्तान में नारी अस्मिता को सिरमौर बनाए रखने के लिए अभी काफ़ी बड़े कदम उठाने की जरूरत हैं। हम और इंतजार नही कर सकते है।

          --  राहुल कुमार पाण्डेय " रश्की "
               दोन , सिवान ( बिहार )

Comments

  1. धन्यवाद आपने अपने विचार व्यक्त किए !

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