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जीवन सार

 कहानी - (जीवन - सार)


लेखक -  राहुल कुमार पाण्डेय रश्की 


1

लू चल रहीं थीं, दोपहर की धूल भरी हवा , फगुनाहट का असर धीरे धीरे अवसान ले रहा था, चैत महीने के कुछ ही दिन बीते थे । वो मेरे रिश्तेदार के रिश्तेदार की पड़ोसी है। और सजातीय भी है। उसका नाम मौसम है। मैं पहुंचा तो वो बैठी मिली। मेरे नाश्ते पानी की व्यवस्था रिश्तेदार कर रहे थे, उसने उछल कर सबसे पहले टेबल फैन चला दिया। बटन दबा कर सर नीचे झुकाए झुकाए कहा :- एतना गरमी बा, रास्ता में बहुत परेशानी भईल होई ?


जबाब में मैंने केवल हूं कहा और वो चुप बैठ गई।



जब पहली बार एक वैवाहिक कार्यक्रम में मिली थीं तो मुझे नॉन सेंस लगी थीं, इस लिहाज़ से की रहन सहन, बोल चाल गांव की परंपरा से ग्रहण किया था। जहां एक तरफ़ मैंने अपनें इलाहाबाद प्रवास के दौर में लड़कियों के बारीक फैशन सेंस से तुलना कर दी, सजने संवरने का कोई ठिक ढंग नहीं, लिपिस्टिक भी होठों पर फैले फैले, गालों पर मेकअप का उचित संतुलन नहीं ! इस बकवास सी तुलना के बाद मैंने अपने आप को कोसा , मैं 12 क्लास में पढ़ रही लड़की की तुलना फालतू में उनसे कर रहा हूं जो बचपन से ब्यूटी पार्लर की दहलीज लांघा करती हैं।


यहां हमने देखा था लड़कियां अपने बालों को सुन्दर दिखने बनाने के लिए उसमे अंडे लगाती है। कंडीशनर का प्रयोग करती है। यह तो लक्स और क्लीन पल्स से आगे सोच भी ना सकी थीं।


आंगिक खूबसूरती में अतुलनीय थी, स्वर्ण सा गोरा बदन , चमचमाती काया तो एक बानगी में किसी को दीवाना बना दे। एक बार पूरे शरीर को निहारने के बाद मैंने संशय से वहां मौजूद लोगों की तरफ़ देखना शुरू किया की कोई मुझे तो नहीं देख रहा है, फ़िर मैंने ध्यान हटा लिया।

दुबारा ना वो दिखी , ना मैंने उसे खोजने की कोशिश की, 


3


वैवाहिक समारोह के सारे कार्यक्रम खत्म हो जाने के बाद 

जब हमउम्र छोटे बड़े लोग दोपहर में हसी ठिठोली कर रहे थे, बची हुई मिठाइयों पर हाथ साफ कर रहे थे तो वो भी आ कर वहा बैठ गई।


मेरे व्यक्तित्व में एक बडी कमी है। चाहता हूं, में जहां बैठू वहां लोग मेरी ही चर्चा करें, मैं विषय के केंद्र में रहूं, इसे अटेंशन सिकर कहते हैं। तो वाजिब भी है उस छोटी सी महफ़िल में चर्चा का केंद्र बिंदु मैं था।


उसे आते हुए मैंने देखा लेकिन जब तक वो बैठी रहीं उस पर ख़ास ध्यान नहीं गया। बीच बीच में चमकीली आभा बरबस आकर्षित करती। उसके प्रति मन में कोई विचार भी नहीं था, कारण यह रहा की मैं किसी अन्य के साथ अपनें तरफ़ से नज़दीकी प्रेम पाश में बंधा था। समर्पण इतना अधिक की, यह जानने हुए मैं जिससे प्रेम करता हूं, वो मुझसे ज्यादा किसी और को प्रेम करती है , उससे विवाह की ख्वाइश जाहिर कर चुका था। 


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 तमाम कार्यक्रम समाप्त करने के बाद जब वापस इलाहाबाद में था तो दोपहर 3 बजे के क़रीब में मौसम ने इस लिए कॉल किया की वो फर्स्ट डिवीजन पास हो गई थी। तब से एक सिलसिला चल निकला। ना जाने क्या क्या तय किए मैंने , ग्रेजुएशन कहा से करेगी ? कौन सा विषय लेगी , कैसे रहना चहिए, क्या पढ़ना चहिए, उसके तमाम सवाल और मेरे जवाब , फिर उसका लंबी खामोशी से चुप होकर सुनते रहना।


मैं हाल चाल पूछूं या ना यह जरूर पूछता की पढ़ाई लिखाई कैसी चल रही है ? कहा : जी बिलकुल भी नहीं, बीमार हूं।


मैंने दवा की फोटु मांगी देखा , कुछ उपाय बताए , गर्म पानी पिया करो, रूम में रात को पंखा ना चलाया करो ,जल्दी सोने की हिदायत दी, खाने पीने की हिदायत दी, हर हाल में टाइम से दवा खाने से लेकर ना जाने क्या क्या प्रवचन सुनाया फिर वो सुबकने लगी , कहती आप जितना केयर करते हो अच्छा लगता है।


मैंने कहा पागल हो, दवा खाकर आराम करो, ठिक हो जावोगी। 



इन दिनों मैं जबरजस्त तरीके से खलिहर था। इश्क में प्रताड़ित होकर बीमार बना घूम रहा था। जिन मोहतरमा से इश्क की लड़ियां लड़ी थी, उनसे बातें नहीं होती थीं। प्रेम का दावा एकाधिकार वादी होती हैं। पूरी तरह संप्रभुता धारण किए हुए। लेकिन उन्हें यह मंजूर नहीं था। उन्हें मुझसे भी प्रेम था उनसे भी, हालाकि मैं यह दावा नहीं कर सकता की उन्हें मुझसे प्रेम था या नहीं ? लेकिन उन्होंने मुझे ऐसा बताया था। मैं अपने बारे में निश्चिंत था, अगर जीवन के किसी हिस्से में मेरी सोच किसी अन्य कारणों से प्रभावित नहीं हुई तो मुझे इस बात का गहरा, दुःख, पीड़न, अफ़सोस हमेशा रहेगा की उन्हें मैं चाहता था पा ना सका।


इसी परिस्थितियों में मैं चिंतन का केंद्र बिंदु वो थीं, मैं कुछ सोचता तो भी उनके बारे में, कुछ ना सोचता तो भी उन्हीं का ख्याल रहता। मैं उनसे बातें ना करता तो किसी से बातें ना करता। वो मुझसे बातें नहीं करती तो मेरे रकीब से कर लेती, उन्हें क्या फ़र्क पड़ने वाला था ?


6

इन्हीं द्वंद के घने झुरमुट में खोए रहने वाले समय में मेरे और मौसम के बीच नजदीकियां बढ़ती गई। लेकिन मेरे मन में मौसम के प्रति कोई ख़ास आकर्षण जैसा ख्याल नहीं आया। एक छोटी बच्ची जो थोड़ी नादान भर है उसे समझा बुझा कर रास्ते पर बनाए रखना ही मेरा दायित्व था।


रात को 2 बजे तक जगा रहा, सबको व्हाट्स एप पर चेक कर रहा था कौन ऑनलाईन है और कौन नहीं। तभी मौसम ने एक मैसेज भेजा, जैसे ही मैसेज आया मैंने तुरंत सीन किया और तुरंत एक ज़ोर का झटका लगा।


बोल्ड अक्षरों में टाइप किए हुए शब्द थे...I Love You .


मैं सोचने लगा ऐसे कौन आई लव यू कहता हैं। सोचा नादान है, इमोशनली हार्मोंस के कारण रात 2 -3 बजे के करीब में युवाओं के अंदर प्रेम क्रीड़ा करने लगता है। 


3 मिनट तक तो मैं मैसेज निहारता रहा, बार बार पढ़ रहा था, एक बार मुंह धो कर आया, सब तरह से देखा, I love You ही लिखा था। लेकिन थोड़ी देर बाद डिलीट कर दिया गया।


मैंने रिप्लाई किया " मैसेज डिलीट करना बुरी बात है" तो उसमे जवाब दिया "मैसेज देख कर रिप्लाई ना करना बहुत बुरी बात है"


अब उसे कैसे समझा दू की मेरे पास कोई जवाब हो तब ना दें।  मैंने केवल इतना ही कहा ठिक कर रही हों, बस मोबाइल रख कर सोने की कोशिश करने लगा, नींद नहीं आई, रात के  2:30 बजे थे। दिव्या उपन्यास लेकर पढ़ने बैठे गया। सुबह 7 बजे तक पढ़ता रहा। पूरा पढ़ लिया।

दिव्या ने पृथुसेन के प्यार में ख़ुद को दमित कर लिया। गुलाम बनी, वैश्या तक कहलाई। अंत में मारिश की हो गई।


सुबह मैसेज बॉक्स में पड़ी लंबी चिट्ठी रूपी संदेश में मौसम ने दिव्या की तरह प्रेम ज़ाहिर किया था। लेकिन मुझे पृथुसेन नहीं बनना हैं। मैंने कहा होली में घर आ रहा हूं ,। मिलने आऊंगा तब बात होगी।


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आज सामने मौसम बैठी है। मैं ख़ुद के सामने खुद को ही देख रहा हूं। चैट बॉक्स में मौसम का लास्ट मैसेज आया हैं।


Hug Me plzz 😞 I Love You 😘

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