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वक़्त की बात , चित्रों के साथ !

किसी शायर ने कहा है कि किसी इंसान में बसते है कई इंसान, उसे ठीक से देखना हो तो कई बार देखो.

                   चित्र - मीनाक्षी


 मैंने कभी भी इसे सिरियस नही लिया. क्योकि मुझे यकीन था की इंसान ऐसा भी नहीं होता है कि जब भी मिले हर बार अपना चेहरा बदलता रहें।

कहते है उम्र आदमी को अनुभव देता है। बहुत कम उम्र में मुझें जल्दी ही यह अहसास हो गया कि इंसान बिल्कुल उस गुलाब की तरह होता है, जो एक वक्त पर नन्हा कोमल बिना काटों वाला सुकांत होता है वहीं दूसरे वक्त पर खुशबूदार प्रेम का प्रतीक फूल बना होता हैं। फ़िर तीसरे वक़्त पर वह पंखुड़ियों में किसी मृत प्रायः देह पर बिखरा होता हैं।

                 चित्र - मीनाक्षी

मेरी आदत रहीं है कि खुली किताब की तरह रहों. इसके कई फ़ायदे है। व्यक्तित्व इतना बिंदास हो जाता है कि किसी से छिपाने को कोई बात नहीं होती है। हृदय में कोई झूठ नहीं होता है, जिसे गहरे घाव की तरह दबा कर रखा जाए. जिंदगी खुशहाल रहती हैं. चमकती रहती है. बिल्कुल ऐसे जैसे किसी फिला मेंट वाले बल्ब से सूरज चमक रहा हो।
               

चित्र - विपुल


मेरे आप पास ऐसे कई लोग है जो ख़ुद में उलझे रहते है. उन्हें पता नही होता कि कब ,क्या करना है, उन्हें सीखना चाहिए एक फूल से....सूरज मुखी का फूल ! जो अपने जन्म के पहले से यह तय कर चुका होता है कि बढ़ते वक्त में उसकी पोजिशन क्या होनी चाहिए .शोधकर्ताओं ने पाया कि सूरजमुखी के पौधों का मुडऩा उसके तने के हिस्सों का दिन के अलग-अलग समय में विकसित होना है। इसके तने का एक हिस्सा दिन में और दूसरा रात में बढ़ता है। इसका बढऩा उस जीन से जुड़ा है जो प्रकाश से प्रतिक्रिया करता है।

                       चित्र - विपुल

जीवन कभी तय नियमों से नही चलता है, लेकिन तय उसूलों पर जरूर चल सकता हैं। जब तक यह निर्धारित नहीं होता है की मेरे उसूल क्या है तब तक मनुष्यता और पशुता में कोई अंतर नहीं हैं.

                                  -  राहुल पाण्डेय रश्की

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