Skip to main content

चुप रह कर बीता देंगे......हम पूरा सफ़र

... आज खूब पढ़ाई हुई। सुबह जल्दी उठ गया, 8 बजे ही...उठते ही पढ़ने बैठ गया। ठीक 2 धंटे बाद एक दोस्त का फोन आया 1 मिनट बात हुई। कुछ जरूरी मैसेज थे। उसके लिए व्हाट्सएप खोलने को बोला गया। फिर उसके बाद पढ़ने बैठ गया। जब पढ़ाई खत्म हुई तो 12 बज चुके थे। सुबह 8 बजे से लेकर 12 बजे तक हा, ना मिलाकर कुल दस शब्द निकले होंगे। चुप चुप....सब लोग चुप...... पूरा चुप है। बस आवज आ रही हैं तो मोबाइल से बजते ख़ूबसूरत गानों की.

अब भूख भी लग चुकी थीं. खाना बनाने लगा. इसी बीच नहा आया। 2 बजे के करीब खाना खा चुका था। अभी भी चुप ही था। मोबाइल से गाने निरंतर बिना रुके बज रहे थे।
हा, दिमाग शांत नहीं था, सारे दृश्य इसमें घूम रहे थे। क्यों रुक गया यहां पर, घर चले जाना चाहिए था मुझे, अभी अकेले है ,सब साथ में होते तो कितना अच्छा होता, सब कितने स्वार्थी है, मुझे छोड़ कर चले गए। फिर यह खयाल आता कि उनकी जगह मैं होता तो फिर क्या करता, शायद यहीं. इन्हीं सोच के बीच मैं खाने की जगह से बिस्तर पर आ चुका हूं 4 बज चुका है। अभी भी मैं चुप हूं। कितना चुप रहूंगा मैं ? लोग शिकायत करते है कि मैं बहुत बोलता हूं तो अच्छा नहीं लगता है।अब मैं ख़ूब चुप हूं, आवो तो देखने मुझे !

4 बजे फिर पढ़ने बैठ गया । मोबाइल पर एक खास दोस्त का फोन आया है. लगभग साढ़े 5 बजे है। दिल कर रहा है ख़ूब बातें करूं, लेकिन मैंने फोन नहीं उठाया। बजते रहने दिया। फ़िर छत पर चला गया। सब लोग दिख रहें है। लेकिन कोई अपना नहीं लग रहा है जो मेरा नाम पुकार कर बुला सके सामने से.... सामने से किसी ने बीते 5-6 दिनों से नहीं पुकारा है।

बोलने का मन कर रहा है, खूब चिल्लाने का... लेकिन यह हो नहीं सकता। फ़िर फोन आया है। यह वीडियो काल है। मन खुश हो गया। लेकिन कुछ एक मिनट के लिए। खुशियों का समय कम होता है। लेकिन इस एक मिनट की यादों के सहारे आज की पूरी रात काट लेनी है इसका एहसान है। मुझे।

फेसबुक, इंस्ट्रा सब बोरिंग कर रहे हैं। साढे 6 में छत से उतर आया हूं। फ़िर पढ़ने का मन कर रहा है। पढ़ भी रहा हूं और व्हाट्सएप भी चला रहा हूं। अभी खुशी का टाइम है सबसे बात हो रही है। इन्ही सब के बीच कब खाना बन गया, कब मैंने खा भी लिया. पता नहीं चला है
 उठते, बैठते ,बात करते, तारीफ करते वक़्त बिल्कुल खुशगवार गुजर रहा है। अब रात को 12 बज रहे हैं। सब अपने अपने घोसले में लौट चुके है। हम तो अपना घोंसला बनाते ही नहीं है, किसी को हमारे जैसे कि फिक्र भी नहीं होती है। होनी भी नहीं चाहिए। मुझे उनकी फिक्र नहीं होती है तो उन्हें मेरी क्यों होगी. फिर मैं सोचने लगा की यह वे लोग है कौन... आखिर मैं बात किसकी कर रहा हूं.


फिर मुस्कुराते हुए अपने मुंह को हाथों से ढक लेता हूं. मोबाइल में गाना बज रहा है..."मेरा चांद मुझे आया है नज़र "


            राहुल कुमार पाण्डेय 25/03/2020

Comments

Popular posts from this blog

आख़िर कब होगा न्याय ?

आख़िर कब होगा न्याय ? भारत का अतीत समृद्ध प्रभाशाली एवम विविधता से युक्त रहा है। इस धरती ने न्याय और सम्मान की सुखद परिभाषा गढ़ी है। अहिंसा एवम समानता के सिद्धांत को इस मिट्टी ने जन्म दिया है। इन्हीं गौरव गाथा को याद कर भारत के समस्त नागरिक ख़ुद पर गौरव महसूस करते हैं। सम्पूर्ण विश्व में कोई ऐसा देश नहीं जो हमारे अतीत जैसा समृद्ध रहा हो, यही कारण है कि इस भूमि ने सदा से ही विदेश के लोगों को अपनी और आकर्षित किया है। कभी सोने की चिड़िया कहा जाने वाला यह देश आज एक विकट एवम गम्भीर समस्या से जूझने पर मजबूर हो गया है। भारत में नारी सम्मान की संस्कृति एवम अवधारणा सबसे प्रचीन है। जंहा पश्चिमी संस्कृति ने महिला को केवल भोग की वस्तु समझा वही भारत ने नारी को देवी का दर्जा देकर समाज को एक अलग रास्ता दिखाया। परन्तु आज वर्तमान समय में हम अपने रास्ते से भटक गए हैं आज भारत मे महिलाओं पर बढ़ती हिंसा ने हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि हम किस रास्ते की और बढ़ चले हैं कुछ दिनों से अलीगढ़ में मासूम ट्विंकल की निर्मम हत्या का मामला सुर्खियों में है। ऐसा नही है कि यह पहली बार हुआ है। बीते महीनों में ऐसी घटनाए

राहुल रश्की की चुनिंदा कविताएं

राहुल रश्की की चुनिंदा कविताएं 1. लॉकडाउन में उसकी यादें आज पढ़ते वक़्त वो नजर आ रही है  किताबों के पन्ने में खुद को छुपा रही है ना जाने क्यों इतना शरमा रही है ? मारे हया के न कुछ बोल पा रही हैं ! इन घुटन भरी रातों में खुराफ़ाती इशारें से हमें कुछ बतला रही है ! आशय, अर्थ, प्रकृति हो या फ़िर परिभाषा सबमें वह ख़ुद का विश्लेषण करा रहीं है इस टूटे हुए दिल में क्यों घर बना रहीं है ? घड़ी की सुई समय को फ़िर दोहरा रही है कोई जाकर पूछे उससे अपनी मुहब्बत में एक नया रकीब क्यों बना रहीं हैं ?                    - राहुल रश्की                     चित्र - मीनाक्षी 2 . कलेजे में प्यार पकाता हूं मैं जिससे प्यार करता हूं वो किसी और से प्यार करती है और मुझसे प्यार का दिखावा मैं कवि हूं यह प्यार मुझे छलावा लगा  मैंने मुंह मोड़ लिया है उससे जैसे धूप से बचने को हर इंसान सूरज से मुंह मोड़ लेता है मैं अपने कमरे में अकेले रहता हूं वहां मुझे कई लोग मिलते है मेरे आस पास वो भीड़ लगा कर मेरी बातें करते है और मैं कुहुक कर उनसे कहता हूं मेरे दिल में दे

तुम और तुम्हारी यादें( कविता)

तुम और तुम्हारी यादें                  (  तस्वीर - मीनाक्षी ) तुम और तुम्हारी यादें बिल्कुल एक दूसरे की पूरक हो तुम्हारी चंचलता की स्थायी भाव है तु म्हारी यादें जब भी मेरा मन नहीं लगता मैं गुफ्तगू कर लेता हूं - कितने प्यार से एहसासों से सराबोर कराती है तुम्हारी यादें घंटों मेरे साथ रहती फिर भी कभी नहीं ऊबती है तुम्हारी यादें और कितनी बातूनी है कभी थकती ही नहीं तुम्हारी यादें जुदाई उन्हें बर्दाश्त नहीं मैं जहां भी रहूं वहां मेरे साथ रहती हैं तुम्हारी यादें बिस्तर पर पड़े पड़े या भीड़ भरी बस में खड़े खड़े कभी भी कहीं भी गुदगुदा कर हसा देती हैं तुम्हारी यादें बड़ी भावुक हैं विह्लव से भरकर पल भर में हृदय में पतझड़ कर आसूं भर कर आंखों में रूला देती हैं तुम्हारी यादें इस मनोभाव की उच्छलता से दूर चला जाना चाहता हूं कब तक गाऊ यह विरह गीत कुछ प्रीत की बातें बता जाऊं ✍️रश्की