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व्यर्थ (कविता ) by Rashki nama

व्यर्थ ( कविता )

व्यर्थ कब तक खोया रहूं
तेरी बातों की जुल्फों में

की कभी पूछोगी दो हाल
मैं बेसब्री से इंतजार में हूं

जब सुबेह होगी तो !

जब सुलह होगी तो ?

व्यर्थ कब तक ढलती रहेंगी
रात अंधेरे तले

की कभी पूछेगी सुबह
की लालिमा

क्या कहोगे कुहारा छटा तो !

जब अरुणिमा खिलेगी तो ?

व्यर्थ कब तक बोलूंगा
अधूरे सवालों के जवाब में

कभी वक़्त पुकारेगा हमें
बुरे वक़्त के दायरे में

क्या बोलेंगे अगर कोई पूछे तो !

क्या बोलोगे अगर उसने ठुकराया तो ?

व्यर्थ कब तक सोचूंगा
डूबकर तिरी तस्वीर में

की ख़ुद की तस्वीर में तस्वीर
तेरी दिख गई

एक टक निहारता रहा तो !

क्या होगा
हाल - ए - दिल मकबूजा हुआ तो ?

                        📝-  राहुल पांडेय रश्की ( 26/11/2019

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