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प्रेयसी को अंतिम खत

प्रिय प्रेयसी

               कमरे में अकेले मेन लाइट बन्द कर टेबल लैंप जला कर जब मै पढ़ने बैठता हूं तब तुमसे कह देता हूं, कॉल मत करना ! और तुम मान जाती हो.

बस दो घंटे बीतते है . इलाहाबाद के पढ़ाकुओं का बाइबिल "लूसेंट समान्य ज्ञान" में मेरियाना गर्त को प्रशांत महासागर की शांति में ढूंढा ही था , तबतक बगल में रखें मेरे नए वाले रेडमी नोट सेवन प्रो की डिस्पले चमक उठती है।

नोटिफिकशन बार के टॉप फ्लोर पर तुम्हारे नंबर के सामने मैसेज की गिनती बढ़ती जा रही है. पता नहीं क्यों , अब बढ़ते मैसेज दिल की धड़कनों को बढ़ाते है.

कभी तुम्हारे एक मैसेज का दस रिप्लाई देने वाला बन्दा दस-बीस या सौ मैसेज की एक रिप्लाई देने से डर जाता है.

शीशे की खिड़कियों के उसपार ऊचे आसमान से गिरती बारिश की बूंदे मुझे प्यास का अहसास कराती है. पीले बॉटल की तलहटी में दो बूंद पानी बचा है,उसे ही पी लेता हूं।

अजीब यह है कि प्यास बुझ जाती है. मन कर रहा है कमरे से निकल कर पानी भर लाऊ, फिर डर लगने लगता हैं . कही तुमसे सामना न हो जाए.

मै फिर देखता हूं बड़ी तेजी से मैसेज के नम्बर बढ़ रहे है. बढ़ते मैसेज को देखकर डर लगने लगा है .

मै मैसेज पढ़ने लगा हूं.लेकिन अचानक सब कुछ धूमिल सा हो जाता है.मैसेज में तुम्हारे शब्द ही नहीं है !

उसमें कर्जदारों का हिसाब दर्ज है.जो मेरे पिता जी ने मेरे लिए मांगे है.जो नई फोटो तुमने सेंड की है उसमें तुम्हारी जगह सुद के रकम का हिसाब दिखता है, जो हर महिने देना है.

बाद के मैसेज में तुमने दसियों बार आई लव यू लिखा है.रोने की इमोजी सेंड कि है. यह सब देख कर मैं कल तक खुश होता था, की कोई मुझसे इतना प्यार करता है. लेकिन आज नफरत होने लगी है.

मुझे लगता है ,ये दो रुपैया प्यार न जाने कितने वर्षों की उम्मीदों पर पानी फेर देना चाहता है. और मुझे अब इससे डर लगने लगा है.

तुम्हारे फालतू के भेजे गए इन मैसेजों को पढ़ने में बीतता हर क्षण मुझे कचोटता है.मै चाहता हूं कि मोबाइल को अभी बहुत दूर फेक दूं., गला दबा दू उन सबका जिन्हें पता है मेरे साथ जुड़ा तुम्हारा नाम.

मै उन सभी के आखों को फोड़ देना चाहता हूं. जिन्होंने कभी बाज़ार हाट में तुम्हें मेरे साथ देखा है.

मै मिटा देना चाहता हूं तुमसे जुड़ी हर यादों को, बिल्कुल खत्म कर देना चाहता हूं. तुम्हारी महक को गंध में बदल देना चाहता हूं. तुम्हारे स्पर्श को धो देना चाहता हूं.

तुम्हारे साथ चलने में मुझे डर लगता है. कही भटक गया तो फिर क्या होगा, उन सबका जो मेरी राह तलाशते है. जिन्हे मुझसे आशा है. जिनके लिए मै सब कुछ हूं.

मै यह जानने के लिए अपनी मां के पास जाना चाहता हूं.
जो मुझे सब कुछ बताती है. वो अभी मेरे गांव में है. आंगन में  सोई थी तभी बारिश आ गई. अब वह ओसारे में चली गई है. मच्छरदानी के अंदर कपड़े के सिले हुए पंखे को हांक रही है.

मै अपनी मां को देखता हूं.फिर तुम दिखने लगती हो.मेरी मां अपनी बचपन में बिल्कुल तुम्हारे जैसी थी. तुम्हारी आवाज़, चेहरा, भोलापन, अल्हड़पन, सरलपन, मासूमियत सब मेरी मां की तरह है.

मां की तरह जब कभी तुम्हारी गोद में अपना सर रखता हूं तो लगने लगता है, अब कोई बोझ नहीं है.

मेरे बालों पर जब तुम्हारी अंगुलियों घूमती है तब मै भूल जाता हूं कि अभी कहा हूं.

जब कभी मै तुमसे नाराज होता हूं, तुम बिल्कुल सामने खड़ी होकर नज़रे झुका लेती हो.कुछ देर बाद जब मैं पैरों के पास की जमीन को देखता हूं तब मेरा दिल दहल उठता है.

इन आंसू कि कीमत कौन सा जौहरी लगा सकता है भला ?

अभी मै तुम्हारे सभी मैसेज को पढ़कर डिलीट कर रहा हूं.
450 मैसेज भेजे है तुमने. अन्तिम मैसेज में लिख गई हो कि " मुझसे अच्छी गर्लफ्रेंड ढूंढ लेना " गुड बाय .

काश तुम सही में गुड बाय कह दो.हमेशा की तरह सुबह चुपके से सबके उठने से पहले मेरे कम्बल को खींच कर मुझे जगाना बन्द कर दो.

मुझे आशा होगी कि तुम कल यह नहीं कहोगी की यार रात को गलती हो गई, तुम्हे डिस्टर्ब कर दिया, कुछ ज्यादा ही मैसेज चले गए थे, नाराज हो क्या ?

रुको तुम्हारे लिए चाय बना कर लाती हूं.

                 समाप्त
                              --------  राहुल कुमार पाण्डेय

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