आज के लोग जमाने को तस्वीरों में कैद करने लगे है. इसके साथ जुड़ी होती है कई जिन्दगी, यादगार किस्से , मनपसंद लम्हें और खूबसरत पल!
तस्वीरों का इतिहास उतना भी पुराना है जितना मनुष्यों का . आज आदमी मशीन द्वारा तस्वीर खींचता है. जब मशीन नहीं थी तब वह स्मृतियों में तस्वीरें सुरक्षित रखता था. जैसे जैसे याददाश्त ख़तम होती जाती, तमाम तस्वीरें भी मिटती जाती.
आसान शब्दों में कहें तो किस्से कहानियों के एलबम में भाव विभोर अभिव्यक्ति द्वारा नायाब तस्वीरों का छायांकन लोग किया करते थे.
आधुनिक युग और इसके आविष्कार ने प्रत्येक वस्तु के भाव , स्थिति और महत्व में आश्चर्यजनक परिवर्तन ला दिया. सदियों से चली आ रही परिभाषाएं बदल गई. चित्रांकन का स्थान छायांकन ने ले लिया.
छायांकन के आविष्कार के पीछे के मजुबत कारण रहे होंगे इस पर एक छात्र मज़बूत राय रख सकता है, मै व्यक्तिगत तौर इतना कह सकता हूं कि एक भावात्मक लगाव ने इसके आविष्कार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. शायद उस वक़्त किसी को यह महसूस नहीं हुआ होगा की एक जमाने में फोटोग्राफी एक इंड्रस्टी के रूप में खुद को स्थापित कर लेगी.
1839 में सर्वप्रथम फ्रांसीसी वैज्ञानिक लुईस जेकस तथा मेंडे डाग्युरे ने फोटो तत्व को खोजने का दावा किया था। ब्रिटिश वैज्ञानिक विलियम हेनरी फॉक्सटेल बोट ने नेगेटिव-पॉजीटिव प्रोसेस ढूंढ लिया था। 1834 में टेल बॉट ने लाइट सेंसेटिव पेपर का आविष्कार किया जिससे खींचे चित्र को स्थायी रूप में रखने की सुविधा प्राप्त हुई।
फ्रांसीसी वैज्ञानिक आर्गो ने 7 जनवरी 1839 को फ्रेंच अकादमी ऑफ साइंस के लिए एक रिपोर्ट तैयार की। फ्रांस सरकार ने यह प्रोसेस रिपोर्ट खरीदकर उसे आम लोगों के लिए 19 अगस्त 1939 को फ्री घोषित किया। यही कारण है कि 19 अगस्त को विश्व फोटोग्राफी दिवस मनाया जाता है।
वैसे हर एक मनुष्य जन्म से फोटोग्राफर होता है. उसके पास कैमरा और लेंस के रूप में प्रकृति प्रदत आंखे होती है. लेकिन फोटोग्राफी के आविष्कार ने इसे एक अलग मंच पर पहुंचाया है.
आज के पाकिस्तान और तत्कालीन ब्रिटिश इंडिया में जन्मे रघु राय को भारत का महान फोटोग्राफर खा जाता है. उनकी कई प्रसिद्ध किताबें प्रकाशित हुई. उन्होंने कहा है की " जो दुनिया को नहीं दिखता वह तस्वीरों ने दिखता है " .
हाल के ही दिनों में जब मानव सभ्यता अक्सर प्राकृतिक आपदाओं से घिरी हुई है कई फोटो ने वैश्विक ख्याति प्राप्त की है.
मैक्सिको की नदी में औधे मुंह तैरते बच्चे की लाश हो या फिर सीरियाई युद्ध से आती तस्वीरें , चिल के सामने कुपोषित बच्चे का जिंदा होना ....आदि कई तस्वीरें हादसों कि पुख्ता सबूत पेश करती है.
आज जब दुनिया माइक्रो टेक्नोलॉजी की बात कर रही है तब फोटोग्राफी कैमरामैन के कमरे से पसर कर हर हाथ में मौजूद मोबाइल फोन के कैमरे तक जा पहुंचा है.
एक बड़ी आबादी को हर वक्त कैमरे के पीछे देखा जा सकता है. भले ही यह शौक़िया तौर पर हो. दिन प्रतिदिन फोटोग्राफी इंड्रस्ट्रीज और इसका बाजार बढ़ता जा रहा है.
इसे उचित गुणवत्ता प्रदान करने के उद्देश्य से कई संस्थान कोर्सेज का संचालन करते है. भारत में पहला फोटोग्राफी कोर्स इलाहाबाद यूनिवर्सिटी द्वारा शुरू किया गया था. हालाकि हाल में ही किन्ही कारणों से यूनिवर्सिटी ने इसे बन्द कर दिया है.
आप सभी फोटोग्राफी दिवस पर यह लेख पढ़े! खूब फोटो खींचे.
- राहुल पाण्डेय रश्की
इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रयागराज
तस्वीरों का इतिहास उतना भी पुराना है जितना मनुष्यों का . आज आदमी मशीन द्वारा तस्वीर खींचता है. जब मशीन नहीं थी तब वह स्मृतियों में तस्वीरें सुरक्षित रखता था. जैसे जैसे याददाश्त ख़तम होती जाती, तमाम तस्वीरें भी मिटती जाती.
आसान शब्दों में कहें तो किस्से कहानियों के एलबम में भाव विभोर अभिव्यक्ति द्वारा नायाब तस्वीरों का छायांकन लोग किया करते थे.
आधुनिक युग और इसके आविष्कार ने प्रत्येक वस्तु के भाव , स्थिति और महत्व में आश्चर्यजनक परिवर्तन ला दिया. सदियों से चली आ रही परिभाषाएं बदल गई. चित्रांकन का स्थान छायांकन ने ले लिया.
छायांकन के आविष्कार के पीछे के मजुबत कारण रहे होंगे इस पर एक छात्र मज़बूत राय रख सकता है, मै व्यक्तिगत तौर इतना कह सकता हूं कि एक भावात्मक लगाव ने इसके आविष्कार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. शायद उस वक़्त किसी को यह महसूस नहीं हुआ होगा की एक जमाने में फोटोग्राफी एक इंड्रस्टी के रूप में खुद को स्थापित कर लेगी.
1839 में सर्वप्रथम फ्रांसीसी वैज्ञानिक लुईस जेकस तथा मेंडे डाग्युरे ने फोटो तत्व को खोजने का दावा किया था। ब्रिटिश वैज्ञानिक विलियम हेनरी फॉक्सटेल बोट ने नेगेटिव-पॉजीटिव प्रोसेस ढूंढ लिया था। 1834 में टेल बॉट ने लाइट सेंसेटिव पेपर का आविष्कार किया जिससे खींचे चित्र को स्थायी रूप में रखने की सुविधा प्राप्त हुई।
फ्रांसीसी वैज्ञानिक आर्गो ने 7 जनवरी 1839 को फ्रेंच अकादमी ऑफ साइंस के लिए एक रिपोर्ट तैयार की। फ्रांस सरकार ने यह प्रोसेस रिपोर्ट खरीदकर उसे आम लोगों के लिए 19 अगस्त 1939 को फ्री घोषित किया। यही कारण है कि 19 अगस्त को विश्व फोटोग्राफी दिवस मनाया जाता है।
वैसे हर एक मनुष्य जन्म से फोटोग्राफर होता है. उसके पास कैमरा और लेंस के रूप में प्रकृति प्रदत आंखे होती है. लेकिन फोटोग्राफी के आविष्कार ने इसे एक अलग मंच पर पहुंचाया है.
आज के पाकिस्तान और तत्कालीन ब्रिटिश इंडिया में जन्मे रघु राय को भारत का महान फोटोग्राफर खा जाता है. उनकी कई प्रसिद्ध किताबें प्रकाशित हुई. उन्होंने कहा है की " जो दुनिया को नहीं दिखता वह तस्वीरों ने दिखता है " .
हाल के ही दिनों में जब मानव सभ्यता अक्सर प्राकृतिक आपदाओं से घिरी हुई है कई फोटो ने वैश्विक ख्याति प्राप्त की है.
मैक्सिको की नदी में औधे मुंह तैरते बच्चे की लाश हो या फिर सीरियाई युद्ध से आती तस्वीरें , चिल के सामने कुपोषित बच्चे का जिंदा होना ....आदि कई तस्वीरें हादसों कि पुख्ता सबूत पेश करती है.
आज जब दुनिया माइक्रो टेक्नोलॉजी की बात कर रही है तब फोटोग्राफी कैमरामैन के कमरे से पसर कर हर हाथ में मौजूद मोबाइल फोन के कैमरे तक जा पहुंचा है.
एक बड़ी आबादी को हर वक्त कैमरे के पीछे देखा जा सकता है. भले ही यह शौक़िया तौर पर हो. दिन प्रतिदिन फोटोग्राफी इंड्रस्ट्रीज और इसका बाजार बढ़ता जा रहा है.
इसे उचित गुणवत्ता प्रदान करने के उद्देश्य से कई संस्थान कोर्सेज का संचालन करते है. भारत में पहला फोटोग्राफी कोर्स इलाहाबाद यूनिवर्सिटी द्वारा शुरू किया गया था. हालाकि हाल में ही किन्ही कारणों से यूनिवर्सिटी ने इसे बन्द कर दिया है.
आप सभी फोटोग्राफी दिवस पर यह लेख पढ़े! खूब फोटो खींचे.
- राहुल पाण्डेय रश्की
इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रयागराज
#MrahulPGp |
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