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गांधी से मुलाकात

       
आज मैं बारी में गया था
तिकोढे के लिए....
आम के पेड़ की पूताली पर चढ़ा

देखा कि वँहा
लोकतंत्र उल्टा लटका है गांधी जी के साथ
और बगल में जिन्ना भी

गांधी जी बैचेन है किसी को ढूंढने में
शायद गोड़से को
उसे

वह अपना मित्र बनाना चाहते है
कुछ दिन साथ रखना चाहते है
साबरमती के आश्रम में

लेकिन तभी भीड़ ने अखलाख को मार दिया
उन्हें नोआखाली की याद आने लगी है
गांधी जी फिलहाल साबरमती नही जाना चाहते 

वो सुबोध को मारने वालों के पास जाना चाहते हैं
उनसे कहना चाहते हैं कि
वो सुबोध को मारने से पहले गांधी को मारें

उन्हें अब भी यकीन हैं -अपने सत्याग्रह पर

तभी धड़ा धड़ गोलियां चली
और लाशें बिछ गई - लंकेश, दाभोलकर, कुलबर्गी की

वो दुखी हो गए
उनकी आंखों में आँसू आ गए

जिन्ना को लगा कि उनकी सिगरेट के धुएं से
गांधी परेशान हैं
उन्होंने सिगरेट बुझा दिया है
आँसू अब भी हैं

जिन्ना के सामने गाँधी कभी रोए नहीं
जिन्ना सकते में आ गए हैं
परेशान होकर- क्योंकि कभी रोए नहीं है गांधी
आज वो रो रहे है इस लिए नहीं, की 

उनके अपने उन्हें गाली दे रहे है
इसलिए कि अब सत्याग्रह नहीं रहा

                         - रश्की
                  १८/५/२०१९ (बिहार )

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