यादों की आग में...
आपका यू शरमाना हमें भा जाता हैं .....न जाने कितनी सुधा चंदर की याद में अपने सुध को खो देती होंगी। लेकिन मैं तो आपकी झुकी हुई पलकों के आग़ोश में खुद को खो देना चाहता हूं.. इस कदर में गुम हो जाना चाहता हूँ , आपके इन जादुई लब्जों में की ये जालिम दुनिया वाले मुझें खोज न सके
आपको पाने की कोशिश करना किसी आशिक की भूल होगी , दूर से आपके चेहरे की कशिश को देखने के बाद जो जादू होशो हवास पर छा जाता है मैं उसी में रहना चाहूंगा। मुझें भूख प्यास का कभी अहसास नही होगा। क्योंकि आपको पाने की भूख से बड़ी भूख और क्या हो सकती हैं ? वो प्यास जो कभी मिटती नहीं हैं मेरे नजरों की प्यास हैं,जो हमेशा तरसती रहती हैं आपको देखने के लिए
मुझें आपकी यादों को सीने में लिए तड़पने में जो सुख मिलता हैं , वह सुख कौन पा सकता हैं? आपकी दगाबाजी और बेवफ़ाई के ज्वर ने जब मुझें जलाया तो पता हैं... बिखरी हुई हर काली राख में वही नूर झलक रहा था जो आपके चेहरे पर झलकता हैं।
लोग अक्सर पूछते हैं कि तुम ख़ुद के नाम के साथ " रश्की " क्यो लगाते हो....इसका कोई वाजिब जवाब नहीं था मेरे पास, यूं ही हस कर बातों को टाल दिया करता था। लेकिन अब बताने के काबिल हो गया हूँ कि आपकी बेरुखी ने हमें इस कदर तोड़ दिया कि अब हम खुद से रश्क( जलन ) करने लगे।अब कभी खुद को इस जलती आग से बाहर नहीं निकाल सकते...
इस जलती हुई आग में तड़पता देख दुनिया वाले मुझ पर पानी फेंकेगे। तब मैं और जलूंगा फोफले पड़ेंगे मेरे जिस्म , मेरी दिली इच्छा हैं कि एक नजर मुझ पर अच्छे से फिरा लेना, खुद की नज़रों में मुझ को डुबोगी और मैं डूबना चाहूंगा। पता हैं डूबने के बाद शरीर हल्का होकर तैरने लगता हैं , लेकिन मुझें तो डूबना हैं न तो इसका उपाय तुम सोच लेना। तुम्हारे उपाय से मरना मेरी खवाइश हैं और कभी आ कर बता देना मुझें जल्दी ही बहुत जल्दी में !
आपकी यादों की लपटों से घिरा
एक " रश्की "
आख़िर कब होगा न्याय ? भारत का अतीत समृद्ध प्रभाशाली एवम विविधता से युक्त रहा है। इस धरती ने न्याय और सम्मान की सुखद परिभाषा गढ़ी है। अहिंसा एवम समानता के सिद्धांत को इस मिट्ट...
शानदार प्यारे भाई
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