Skip to main content

नोटबन्दी; एक काला अध्याय

8 नवंबर 2016 रात को 8:45 होने वाले थे समाचार केंद्र से हमने समाचार सुनने का निश्चय किया , समाचार शुरू हुआ सबसे प्रमुख समाचार था कि भारत के प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी ने देश में नोटबंदी की घोषणा की है आज ही रात 12:00 बजे से 500 के और 1000के नोट अमान्य करार दे दिए गए थे मैंने राष्ट्र के नाम प्रधानमंत्री के संबोधन को पूरी तरह ध्यान से सुना, समाचार समाप्त होने के बाद मैंने नोटबंदी की जानकारी उसी समय अपने परिवार के सदस्यों एवं मित्रों को खासकर अपने रूम पार्टनर को दी,  उस समय मैं इंटरमीडिएट परीक्षा की तैयारी कर रहा था ,सुबह हुई  लगभग 5:00 बजे थे गांव में युवाओं की आवादी बड़ी संख्या में सड़कों पर दौड़ लगाती होती है उनका सपना होता है भारतीय सेना में भर्ती होने का, गांव के सभी लोग कौतूहल से भरे हुए आश्चर्यचकित थे ।सरकार के एक फैसले ने उन्हें चिंतन करने पर विवश कर दिया था। जिनके पास 500, 1000के नोट थे, वह भी बेकार हो गए थे किसी तरह से भाग दौड़ कर के वह अपने पैसों का छुट्टा करवाना चाहते हैं परंतु तब तक नोटबंदी की जानकारी हवा हवा में उड़ते हुए गांव के सभी मोहल्ले  में फैल गयी थी ।गांव के सभी लोग  आश्चर्य से भरे हुए थे, नोटबंदी के फैसले और नियम कानूनों के बारे में किसी को भी कोई स्पष्ट जानकारी नहीं थी ,।आखिर पैसों का अब क्या करना होगा ,जो अभी लोग के पास है यह सवाल सभी के मन में बैठा था, खासकर वे  महिलाएं परेशान थी जिनके घर पर पुरुष सदस्य नहीं थे अपने घर से सिवान स्थित अपने रूम पर गया मकान मालिक को किराया देने के लिए मैंने पुराने पैसे ही अपने पास रखे थे ।तमाम आग्रह करने पर मकान मालिक ने किराया तो ले लिया परंतु साथ में चेतावनी भी दी की  पैसा नहीं चलेगा तो मुझे पैसा लौटा दिया जाएगा । नोटबंदी के बाद पूरा शहर थम सा गया था एक तरह से हमने भी अपने  अपने खर्चों में भारी कटौती की थी, हम किसी तरह इस काले दिन को एक-एक कर गुजार लेना चाहते थे ।वह  वक्त आ गया जब पूरे देश को लाइन में लगना पड़ा  डाकघर , बैंक में पुराना नोट जमा करवाने के लिए या बदलवाने के लिए  काउंटर बनाए गए थे लेकिन मैं साफ तौर पर कह सकता हूं कि हमने तो इमरजेंसी नहीं देखी है परंतु भारत के इतिहास में दूसरी इमरजेंसी थी। जिसने जनता को भयभीत और परेशान कर दिया था ।मैं खुद 2014 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी और खासकर नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व का मुरीद रहा परंतु खुद पर अफसोस करने के सिवा इस समय कोई चारा नहीं था ।हां जनता की एक बड़ी आबादी नोटबंदी के समर्थन में  खड़ी थी  की इससे भ्रष्टाचार मिटाने और देश में भी  कैशलेस इकोनॉमी को बढ़ावा मिलेगा परंतु यह बाद की बात थी,खुद मैं भी नोटबन्दी के महत्व को समझता था , परन्तु इसे लागू करने की लिए सरकार के पास को भी नीति नही थी,सरकार के तरफ से जनता को बताया गया कि इससे जाली नोट ,काला धन,आदि का खात्मा हो जाएगा,। परिस्थितियां तत्कालीन समय को प्रभावित कर रही थी हमारे लिए सबसे दुखद दिन था दो महीने बाद ही बोर्ड के एग्जाम होने वाले थे। हमने देखा कैसे जनता चार किलोमीटर दूर दूर तक लाइन में खड़ी थी और पुलिस वालों के  लाठियां खा रही थी। रोज हंगामा मारपीट होते रहते हैं बैंक कर्मचारी भी परेशान थे परंतु उंहें भी अपनी ड्यूटी निभानी थी ,और वह इसके बदले वेतन लेते थे एक एक कर सरकार के नियम कड़े होते जा रहे थे । जनता को खुद का पैसा उतारने पर रोक लगा दी गई । कोई भी व्यक्ति तय सीमा से अधिक पैसा नही उतार सकता था। यदि  घर विवाह हो तो भी उसे शादी का कार्ड लेकर बैंक के पास जाना होता था क्योंकि शादी के कार्ड के आधार पर ही पैसा मिलता था , सभी लोग इस आशा के साथ आजादी के बाद दूसरी गुलामी में जी रहे थे ,क्योंकि उन्हें यह विश्वास था कि सरकार की इस कदम की बाद  एक ऐसा समय आएगा जब काला धन नकली नोट सहित तमाम सुधार देश में हो जाएंगे ।और सरकार  सभी जनता को 1500000 रुपए देगी यह भारतीय जनता पार्टी का चुनावी वादा था । भारत के प्रमुख अर्थशास्त्री पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह समेत जानी मानी अर्थशास्त्रियों ने सरकार के इस कदम से जुदा होकर अपनी राय दी थी परंतु यह सरकार अपनी मनमानी  रवैया से बाज नहीं आ रही थी कैसे-कैसे जनता ने नोटबंदी के हालात पर खुद को परिस्थितियों के मुताबिक डाल दिया धीरे-धीरे संकट सामान्य होता गया सामान्य दिन आये, जनता ने सरकार से जवाब मांगना शुरू किया परंतु सरकार के पास इसका कोई भी माकूल जवाब नहीं था कि नोटबंदी से देश को कितना फायदा हुआ।
और अब जब भारतीय रिजर्व बैंक ने 2016 -17 की रिपोर्ट कार्ड जारी किया है तब देश को बताया गया है कि नोटबंदी के बाद 99 परसेंट नोट सरकार के पास वापस चले आए हैं इसका मतलब सीधा सीधा नोटबंदी पर मोदी सरकार बिल्कुल असफल रही  एक बार फिर संपूर्ण क्रांति की शुरुआत होनी चाहिए
लोक और मैं खुद विश्वास के साथ कह सकता हूं की हमारी अर्थव्यवस्था का वही हाल है जो नवंबर 2016 के पहले था हमें इस समय व्यवस्था में कोई भी बदलाव देखने को नही मिल रहा हैं।
सरकार को ये उम्मीद थी कि जो पैसा काले धन के रूप में मौजूद है, वो बैंकों में जमा नहीं किया जाएगा.और जिनके पास ये पैसा है, वे अपनी पहचान ज़ाहिर करना नहीं चाहेंगे. और इस तरह से काले धन की एक बड़ी रकम बर्बाद हो जाएगी. रिज़र्व बैंक की सालाना रिपोर्ट में कहा गया है कि अप्रैल, 2016 से मार्च, 2017 के बीच 500 (पुरानी सिरीज़ वाले) और 1000 के 573,891 जाली नोटों की पहचान की गई. नोटबंदी में बाज़ार में चलन से हटाए गए नोटों की कुल संख्या 24.02 अरब थी.
अब 2016-17 में पकड़े गए जाली नोटों की संख्या केलिहाज से देखें तो चलन से हटाए गए नोटों का ये शून्य फ़ीसदी के करीब हैं।
                                राहुल कुमार पांडेय
                           ( ब्लॉगर)
                           इलाहाबाद विश्वविद्यालय
                         msrahul715@gmail.com

Comments

Popular posts from this blog

आख़िर कब होगा न्याय ?

आख़िर कब होगा न्याय ? भारत का अतीत समृद्ध प्रभाशाली एवम विविधता से युक्त रहा है। इस धरती ने न्याय और सम्मान की सुखद परिभाषा गढ़ी है। अहिंसा एवम समानता के सिद्धांत को इस मिट्टी ने जन्म दिया है। इन्हीं गौरव गाथा को याद कर भारत के समस्त नागरिक ख़ुद पर गौरव महसूस करते हैं। सम्पूर्ण विश्व में कोई ऐसा देश नहीं जो हमारे अतीत जैसा समृद्ध रहा हो, यही कारण है कि इस भूमि ने सदा से ही विदेश के लोगों को अपनी और आकर्षित किया है। कभी सोने की चिड़िया कहा जाने वाला यह देश आज एक विकट एवम गम्भीर समस्या से जूझने पर मजबूर हो गया है। भारत में नारी सम्मान की संस्कृति एवम अवधारणा सबसे प्रचीन है। जंहा पश्चिमी संस्कृति ने महिला को केवल भोग की वस्तु समझा वही भारत ने नारी को देवी का दर्जा देकर समाज को एक अलग रास्ता दिखाया। परन्तु आज वर्तमान समय में हम अपने रास्ते से भटक गए हैं आज भारत मे महिलाओं पर बढ़ती हिंसा ने हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि हम किस रास्ते की और बढ़ चले हैं कुछ दिनों से अलीगढ़ में मासूम ट्विंकल की निर्मम हत्या का मामला सुर्खियों में है। ऐसा नही है कि यह पहली बार हुआ है। बीते महीनों में ऐसी घटनाए

राहुल रश्की की चुनिंदा कविताएं

राहुल रश्की की चुनिंदा कविताएं 1. लॉकडाउन में उसकी यादें आज पढ़ते वक़्त वो नजर आ रही है  किताबों के पन्ने में खुद को छुपा रही है ना जाने क्यों इतना शरमा रही है ? मारे हया के न कुछ बोल पा रही हैं ! इन घुटन भरी रातों में खुराफ़ाती इशारें से हमें कुछ बतला रही है ! आशय, अर्थ, प्रकृति हो या फ़िर परिभाषा सबमें वह ख़ुद का विश्लेषण करा रहीं है इस टूटे हुए दिल में क्यों घर बना रहीं है ? घड़ी की सुई समय को फ़िर दोहरा रही है कोई जाकर पूछे उससे अपनी मुहब्बत में एक नया रकीब क्यों बना रहीं हैं ?                    - राहुल रश्की                     चित्र - मीनाक्षी 2 . कलेजे में प्यार पकाता हूं मैं जिससे प्यार करता हूं वो किसी और से प्यार करती है और मुझसे प्यार का दिखावा मैं कवि हूं यह प्यार मुझे छलावा लगा  मैंने मुंह मोड़ लिया है उससे जैसे धूप से बचने को हर इंसान सूरज से मुंह मोड़ लेता है मैं अपने कमरे में अकेले रहता हूं वहां मुझे कई लोग मिलते है मेरे आस पास वो भीड़ लगा कर मेरी बातें करते है और मैं कुहुक कर उनसे कहता हूं मेरे दिल में दे

तुम और तुम्हारी यादें( कविता)

तुम और तुम्हारी यादें                  (  तस्वीर - मीनाक्षी ) तुम और तुम्हारी यादें बिल्कुल एक दूसरे की पूरक हो तुम्हारी चंचलता की स्थायी भाव है तु म्हारी यादें जब भी मेरा मन नहीं लगता मैं गुफ्तगू कर लेता हूं - कितने प्यार से एहसासों से सराबोर कराती है तुम्हारी यादें घंटों मेरे साथ रहती फिर भी कभी नहीं ऊबती है तुम्हारी यादें और कितनी बातूनी है कभी थकती ही नहीं तुम्हारी यादें जुदाई उन्हें बर्दाश्त नहीं मैं जहां भी रहूं वहां मेरे साथ रहती हैं तुम्हारी यादें बिस्तर पर पड़े पड़े या भीड़ भरी बस में खड़े खड़े कभी भी कहीं भी गुदगुदा कर हसा देती हैं तुम्हारी यादें बड़ी भावुक हैं विह्लव से भरकर पल भर में हृदय में पतझड़ कर आसूं भर कर आंखों में रूला देती हैं तुम्हारी यादें इस मनोभाव की उच्छलता से दूर चला जाना चाहता हूं कब तक गाऊ यह विरह गीत कुछ प्रीत की बातें बता जाऊं ✍️रश्की