तुम और तुम्हारी यादें ( तस्वीर - मीनाक्षी ) तुम और तुम्हारी यादें बिल्कुल एक दूसरे की पूरक हो तुम्हारी चंचलता की स्थायी भाव है तु म्हारी यादें जब भी मेरा मन नहीं लगता मैं गुफ्तगू कर लेता हूं - कितने प्यार से एहसासों से सराबोर कराती है तुम्हारी यादें घंटों मेरे साथ रहती फिर भी कभी नहीं ऊबती है तुम्हारी यादें और कितनी बातूनी है कभी थकती ही नहीं तुम्हारी यादें जुदाई उन्हें बर्दाश्त नहीं मैं जहां भी रहूं वहां मेरे साथ रहती हैं तुम्हारी यादें बिस्तर पर पड़े पड़े या भीड़ भरी बस में खड़े खड़े कभी भी कहीं भी गुदगुदा कर हसा देती हैं तुम्हारी यादें बड़ी भावुक हैं विह्लव से भरकर पल भर में हृदय में पतझड़ कर आसूं भर कर आंखों में रूला देती हैं तुम्हारी यादें इस मनोभाव की उच्छलता से दूर चला जाना चाहता हूं कब तक गाऊ यह विरह गीत कुछ प्रीत की बातें बता जाऊं ✍️रश्की
" रश्की नामा " ब्लॉग के एक एकमात्र और नियमित लेखक राहुल कुमार पाण्डेय " रश्की " हैं। आप हिंदी साहित्य , राजनीति विज्ञान और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के गंभीर अध्येता हैं। समसामयिकी विषयों पर चिंतन और लेखन को लेकर सक्रिय रहते हैं। इस ब्लॉग पर व्यक्त विचार नितांत व्यक्तिगत हैं। उपलब्ध सामग्री राहुल पाण्डेय रश्की के स्वामित्व अधीन हैं। प्रकाशन हेतू अनुमती आवश्यक है। ब्लॉग से जुड़े समस्त कानूनी मामलों का क्षेत्र इलाहाबाद होगा।